
“मोदी गायब हैं…” — सुप्रिया श्रीनेत का यह पोस्टर शायद कुछ देर के लिए कांग्रेस को डिजिटल योद्धा जैसा महसूस करा गया, लेकिन असल में इसने पार्टी की पोल खोल दी। सोशल मीडिया पर वायरल हुए इस पोस्टर ने वो कर दिखाया जो बीजेपी की ट्रोल आर्मी भी इतने असरदार ढंग से न कर पाई — राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल।
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तीन नेता, एक पार्टी, लेकिन तीन दिशा
पार्टी के तीन प्रमुख चेहरे —
जयराम रमेश: संचार मामलों के महासचिव
पवन खेड़ा: मीडिया और पब्लिसिटी चेयरमैन
सुप्रिया श्रीनेत: सोशल मीडिया प्रमुख
ये तीनों जैसे एक-दूसरे को ब्लॉक कर चुके हैं। आखिर पार्टी के अन्दर इन तीनों में रसूख की लड़ाई जो चल रही है। सूत्र बताते हैं कि जयराम रमेश ने सुप्रिया को पोस्टर हटाने को कहा, लेकिन उन्होंने न सुनी, न हटाया। जब राहुल गांधी खुद नाराज़ हुए, तब जाकर पोस्टर डिलीट किया गया। अब सवाल है — क्या सुप्रिया को राहुल की भी नहीं सुननी थी? यहाँ एक सवाल और खड़ा हो रहा है कि राहुल जब अपने संसदीय क्षेत्र में थे यानि दिल्ली बाहर, उसके बाद वो कानपुर गए शहीद के घर सांत्वना देने ठीक उसी दौरान ये पोस्टर क्यों बाहर आया।
अंदरूनी दरार या जान-बूझकर बीजेपी को ऑक्सीजन?
पोस्टर वायरल होने के बाद जब चारों तरफ से आलोचना हुई, तब पार्टी के ‘क़रीबी सूत्रों’ ने बताया कि कनिष्क, कौशल और अलंकार — जो राहुल गांधी के रणनीतिक सलाहकार माने जाते हैं — ने मीडिया को बताया कि राहुल ने डांटा, तभी पोस्टर हटाया गया।
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तो अब सवाल है —
ये जानकारी लीक किसने की?
क्या पार्टी के भीतर कोई जान-बूझकर बीजेपी को “राहत पैकेज” दे रहा है?
या फिर ये सिर्फ सोशल मीडिया की मचाई ‘पॉलिटिकल भगदड़’ है?
दो मुंह वाली रणनीति या आत्मघाती चाल?
एक ओर कांग्रेस केंद्र सरकार के साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है। वहीं दूसरी ओर उसी कांग्रेस की सोशल मीडिया विंग ऐसा पोस्टर उछाल देती है, जो प्रधानमंत्री को गायब घोषित कर देता है।
यानी ऊपर से दोस्ती, नीचे से पोस्टरबाज़ी।
राहुल की ‘स्क्रूटनी’ से क्या निकलेगा?
अब जब राहुल गांधी सोशल मीडिया डिपार्टमेंट के खर्चों और कामकाज की जांच में लग गए हैं, तब तक देश भर में कांग्रेस की “गायब नेतृत्व क्षमता” की चर्चा हो चुकी है।
फ्री की सलाह:
“राहुल जी, भरोसा करिए लेकिन आँख बंद करके नहीं। वरना अगला पोस्टर आपके लिए ही न बन जाए — ‘विपक्ष गायब है।’”
कांग्रेस के इस एपिसोड ने फिर दिखा दिया कि डिजिटल सर्जरी से पहले विचारों की एमआरआई ज़रूरी है। सुप्रिया का एक पोस्टर सिर्फ बीजेपी को फायदा नहीं दे गया, बल्कि ये भी साबित कर गया कि कांग्रेस की अपनी डिजिटल सेना बिना जनरल के लड़ रही है।
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